उत्तराखंड में चुनावों का दौर समाप्त होने का नाम सा नहीं ले रहा है। हाल ही में संपन्न हुए लोक सभा चुनावों के एकदम बाद उत्तराखंड दो उपचुनावों में बद्रीनाथ तथा मंगलौर में लोकसभा से एकदम विपरीत नतीजे देख चुका है। जहाँ एक ओर लोक सभा चुनाव में उत्तराखंड में पंच कमल खिला वहीँ उपचुनावों में भाजपा का बाहरी एवम पार्टी में नए आये लोगों को टिकट देना भारी साबित हुआ। हालाँकि यह बात कोई अचंभित करने वाली नहीं थी क्यूंकि कानाफूसियों में वोटर और कार्यकर्ताओं की नाराज़गी साफ़ देखी जा सकती थी। पहाड़ी विधानसभा में तो वोटर भाजपा से दूर जाते दिखे। हालाँकि लोक सभा की गढ़वाल सीट में आने वाली बद्रीनाथ सीट में पहले भी कांग्रेस की ही पताका थी , परन्तु ऐसा प्रतीत हुआ मानो लोक सभा चुनाव की थोड़ी नाराज़गी भी यहाँ उम्मीदवार को झेलनी पड़ी।
अब यह विश्लेषण और महत्वपूर्ण इसलिए हो जाता है क्योंकि केदारनाथ उपचुनाव सर पर आ चुका है। केदारनाथ से विधायक शैला रानी के आकस्मिक निधन के बाद सरगर्मियां जहाँ तेज़ हो रही है वहीँ भाजपा से प्रत्याशियों के नामों पर भी अटकलें लगनी शुरू हो गयी हैं।
गौरतलब है कि भाजपा को केदारनाथ में इस बार अपनी छवि को मजबूत करने वाले चेहरे के साथ आना आवश्यक प्रतीत होता जा रहा है। क्यूंकि शैला रानी इससे पहले केदारनाथ सीट कांग्रेस के टिकट पर जीत चुकीं थीं उसके ठीक बाद यही सीट कांग्रेस के टिकट पर पुनः मनोज रावत ने जीती तथा इस बार शैला रानी ने भाजपा में आकर इस सीट पर कब्ज़ा किया। यानी इस सीट पर कांग्रेस को भाजपा की हवा का उतना प्रभाव नहीं पड़ता है।
एक और बात इस सीट को थोड़ा दिलचस्प बनाती है कि इस सीट पर वे उम्मीदवार जो कि लोगों के साथ अधिक जुड़ाव रखते हैं उन्हें जनता मायूस नहीं करती जहाँ कांग्रेस, भाजपा के प्रत्याशी यहाँ अच्छे वोट लाते हैं वही निर्दलीय उम्मीदवार कुलदीप भी पिछले दो चुनावों में दुसरे एवम तीसरे स्थान पर रहे हैं।
सूत्रों की मानें तो इस बार जहाँ कांग्रेस फिर से मनोज रावत पर विश्वास दिखाएगी वहीँ भाजपा में कई चेहरे सामने आ रहे हैं।
ऐश्वर्या :
शैला रानी की बेटी पर दाव खेलने की तैयारी से इंकार नहीं किया जा सकता , पार्टी सिम्पैथी वोट की अटकलें लगा कर वोटों की गुहार कर सकती है परन्तु वर्त्तमान स्थिति में यह दाव उल्टा पड़ सकता है क्यूंकि न तो ऐश्वर्या जनता के बीच इतना जोड़ जुड़ाव रखती है और न ही कार्यकर्ताओं के बीच। संभवतः भाजपा के वोट पूर्ण रूप से इस प्रत्याशी के खेमे में भी न जा पाएं
आशा नौटियाल:
आशा नौटियाल भी छेत्र में बड़ी नेत्री रही हैं, और भाजपा में होने की वजह से इन पर दाँव लग सकता है। साथ ही भाजपा की अभी कुछ ही दिनों पूर्व हुई कार्यकारिणी की बैठक में शैला रानी के लिए शोक सन्देश भी आशा नौटियाल से ही पढ़वाया गया । जहाँ एक और आशा नौटियाल का जनता में नाम प्रचलित है परन्तु घनिष्ट जुड़ाव के साथ साथ आपदा ग्रस्त क्षेत्र में नयी उम्मीद और आगे की विकासवादी छवि इस चेहरे के साथ अभी दिखाई नहीं दे रही है। भाजपा इस चेहरे के साथ नाये वादे नहीं कर पायेगी ।
संजय दरमोडा शर्मा :
इसी क्षेत्र में पैदा हुए तथा दिल्ली में उच्चतम न्यायलय में सीनियर अधिवक्ता संजय शर्मा १२ साल से इस क्षेत्र में सामाजिक कार्यों के माधयम से जुड़े हैं तथा पिछले चुनाव में भी भाजपा से प्रत्याशी की दौड़ में थे। जहाँ पिछली सभी आपदाओं में संजय शर्मा ने क्षेत्र में अलग अलग गाँवो में अपनी एक टीम बना कर सेवा कर एक पहचान बनायीं है वही क्षेत्र में बच्चों की पढ़ाई , विवाह करवाते हुए सामाजिक कार्यकर्ता की भूमिका में दृढ़ पहचान बना पाए हैं। जहाँ कई बड़ी संस्थाओं को साथ लेकर क्षेत्र में विभिन कार्य कर रहे संजय शर्मा का नाम भी दौड़ में हो सकता है। परन्तु भाजपा का सामाजिक कार्यकर्त्ता पर भरोसा दिखाना क्या इस बार नज़र आएगा यह देखने वाली बात होगी।
बहरहाल कांग्रेस का पलड़ा अभी केदारनाथ मे भारी लग रहा है। परन्तु भाजपा और कांग्रेस का वोटों का अंतर वर्त्तमाना मे कम ही होगा ऐसा माना जा सकता है। ऐसे मे वोटरों को रिझाने के लिए नये चेहरे और पूर्ण आहुति की आवश्यकता होगी।