सरकारी शिक्षा का स्तर पहले की तुलना में दिन प्रतिदिन बढ़ता जा रहा है और अभिभावकों का विश्वास सरकारी विद्यालयों में पुनर्स्थापित हुआ है, उसके पीछे सरकारी शिक्षकों के अपने कार्यों और विद्यार्थियों के प्रति समर्पण के साथ साथ सरकारी योजनाओं एवं उनके क्रियान्वयन में उनकी पहले से अधिक भागीदारी सहायक सिद्ध हुई है। सरकारी शिक्षक पूरी संवेदनशीलता के साथ विद्यार्थियों की शैक्षिक उन्नति के साथ-साथ उनके व्यक्तित्व विकास को नई शिक्षा नीति के अनुरूप कौशलों के विकास के साथ जोड़ते हुए आगे बढ़ रहे हैं। ठीक इसी प्रकार के कार्यों को धरातलीय स्तर पर अंजाम देते हुए सहारनपुर की एक शिक्षिका स्मृति चौधरी अपनी बेटियों के साथ मिलकर एक अनोखी पहल कर रहीं है। सरकारी जूनियर हाई स्कूल में विज्ञान की यह शिक्षिका प्रधानमंत्री आत्मनिर्भर भारत अभियान के लक्ष्यों को नई शिक्षा नीति के कौशल विकास लक्ष्यों के साथ जोड़ते हुए विद्यार्थियों के सर्वांगीण विकास और उनके अभिभावकों के आर्थिक स्तर को बढ़ाने के लिए विद्यालय में प्रधानमंत्री आत्मनिर्भर भारत अभियान उत्तराखंड टीम के साथ मिलकर कार्यशालाओं का आयोजन कर रही हैं। शनिवार गतिविधियों के अंतर्गत विद्यालय परिसर में अभिभावकों को आमंत्रित कर उन्हें दिखने में छोटे लेकिन रोजमर्रा के जीवन से जुड़ी हुई चीजें जैसे तरह-तरह के बैग बनाना, हर्बल गुलाल और जड़ी बूटियों से युक्त दिये बनाना, गुलाब की पंखुड़ियों से गुलाबजल बनाना, सेब का सिरका बनाना, घर में ही मशरूम इत्यादि की खेती करने जैसी जानकारियां देकर उन्हें रोजगार के अवसर उपलब्ध करा रहीं हैं ताकि पैसे के कारण बच्चों की पढ़ाई किसी भी प्रकार से बाधित ना हो। वैसे तो सरकारी विद्यालय में सभी चीजें निशुल्क मिलती है पुस्तके, बैग, यूनिफार्म, जूते मोजे, स्वेटर, खाना, दूध और फल लेकिन फिर भी बच्चों की कुछ अन्य आवश्यकताएं होती है, बच्चों की क्रिएटिविटी या हुनर को आगे बढ़ने के लिए पैसे की जरूरत होती है। कई बार पैसे की कमी से उनकी क्रिएटिविटी दब जाती है। बच्चों को पेंटिंग बनानी है तो रंगों की आवश्यकता है, क्राफ्ट करना है तो तरह-तरह की चीजें बाजार से मंगानी पड़ती हैं और इसी कारण कई बार बच्चों को अपने शौक और हुनर को छोड़ना पड़ता है जो कि आगे चलकर उनके कुंठित व्यवहार का कारण बन सकता है। अध्यापिका का प्रयास है कि माताएं और बहनें घर बैठे अपने बचे हुए समय में स्वरोजगार से जुड़ेंगी तो अपने और बच्चों छोटी-छोटी जरूरतों के लिए पैसा कमा सकेंगी, साथ ही बच्चे उनसे देख कर सीखेंगे और पढ़ाई के साथ-साथ हुनरमंद भी बनेंगे। पूर्व माध्यमिक विद्यालय सबदलपुर, सहारनपुर अपने आप में उत्तर प्रदेश का ऐसा पहला विद्यालय है जहां अभिभावकों को प्रधानमंत्री आत्मनिर्भर भारत अभियान से जोड़कर सिलाई, कढ़ाई से लेकर जूस, अचार, मुरब्बे बनाने तक सभी कार्य विद्यालय समय के पश्चात अभिभावकों के साथ किए जाते हैं। आने वाले समय में तैयार उत्पादों को उत्तराखंड टीम द्वारा बाजार में उतारे जाने का भी आश्वासन दिया गया है। स्मृति चौधरी इस पूरे कार्य के सफल होने का राज बताते हुए कहती हैं कि यह एक टीम वर्क है जोकि विद्यालय के अपने शिक्षक साथियों और परिवार के सदस्यों के बिना पूरा नहीं हो सकता। इसके लिए वह अपनी बड़ी बेटी समृद्धि चौधरी जो कि लिटिल हेल्प ट्रस्ट एवं रेडियो मेरी आवाज के संस्थापिका है और शैक्षिक आगाज़ के नाम से शिक्षकों कि कौशल वृद्धि के लिए काम करती हैं, के साथ-साथ छोटी बेटी सृष्टि चौधरी जोकि लिटिल हेल्प ट्रस्ट की शैक्षिक शाखा शैक्षिक आगाज़ में विद्यार्थियों के लिए एक्टिविटी डिजाइनर के रूप में कार्य करती हैं और साथ ही रेडियो मेरी आवाज की क्रिएटिव डायरेक्टर हैं, के सहयोग को धन्यवाद देती हैं और इस पूरी उपलब्धि का श्रेय अपने परिवार और शिक्षक साथियों को देती हैं। उत्तराखंड की प्रधानमंत्री आत्मनिर्भर भारत अभियान की प्रदेश प्रमुख श्रीमती सरोज चौहान एवं प्रदेश संयोजिका श्रीमती श्यामा देवी ने दोनों बेटियों को इस प्रोजेक्ट को विद्यालयों के साथ जोड़ने के लिए सम्मानित कर उनका मनोबल बढ़ाया है। भविष्य में शिक्षिका स्मृति चौधरी और समृद्धि एवं सृष्टि की योजना है कि प्रत्येक जूनियर एवं माध्यमिक विद्यालय के अभिभावकों को इस अभियान से जोड़कर समाज को एक नई दिशा दी जाए।

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