कुशल लोगों के संगठित होने से खुशहाल बन सकता है उत्तराखंड शिक्षक पंकज सुंदरियाल!
ब्यूरो रिपोर्ट:अपनी पठन शैली, पर्यावरण प्रेमी और माचिस की तिल्लियों से कलाकृति बना कर मशहूर शिक्षक पंकज सुन्दरियाल ने हाल में अपना नाम इंडिया बुक आफ रिकार्ड में दर्ज करवाया है। पंकज सुन्दरियाल का मानना है कि ईश्वर ने उत्तराखण्ड को संसाधनों से भरपूर स्नेह दिया है, हम अपने संसाधनो का अगर 40 प्रतिशत भी इस्तेमाल कर पाये और कूड़े से जरूरी चीजें बना पायें तो हमारा प्रदेश हर क्षेत्र में अव्वल हो सकता है। उन्होंने कहा हमारे पास कुशल लोग हैं लेकिन असंगठित है।
लोगों को कोई उचित मंच नहीं मिल पाता, बहुत सी कलायें इस कारण लुप्त हो गयी,हैं जड़ी बूटी का ज्ञान भी विलुप्त हो रहा है। आधुनिक पीढ़ी चाहकर भी वो कला और ज्ञान नहीं सीख पा रहे है।
हम अपने आसपास ऐंसे लोगों को जानते है जो अभी भी बाँस का कार्य करते है, कोई अच्छे ढोलवादक है, मिस्त्री है ऐंसे बहुत है लेकिन उनकी आर्थिक स्थिति, रहन सहन से ऐंसा नहीं लगता कि उनके ज्ञान का कौशल का सही इस्तेमाल या सम्मान हो रहा है,उनके अपने बच्चे सीखने में कुशल नहीं होते और दूसरो के बच्चे बहुत कारणो से चाहकर भी सीखना नहीं चाहते। अब शादी वगैरह होगी तो ढोल तो बजेगा बिजनौरी भी और डीजे भी, लेकिन मजा नहीं आता। जैसे पहले होता था,कौशल विलुप्त पहले गाँवो में दवाइयों के जानकार हुआ करते थे, वे जादुई जड़ी बूटियों के बारे में जानते थे, उन्होंने ज्ञान बाँटा नहीं और चिकित्साप्रणाली ने उसे हतोत्साहित किया कौशल विलुप्त हमें पलायन और दूसरी समस्या पर बात करने से पहले देखना होगा कि किस क्षेत्र से सीधे आजिविका कमा सकते है जिससे युवाओ के कौशल में वृद्धि हो। साथ ही साथ प्रशिक्षण और अकादमी की स्थापना करना। नयी शिक्षा नीति इसी ओंर इशारा करती है कि बच्चे को शिक्षण के साथ साथ स्किल दिया जाये।
उस स्किल को बाहर लाने के लिए हमें स्थानीय संसाधनों की आवश्यकता होगी। कयोंकि शिक्षा नीति के अनुसार संसाधन सुलभ हो और अगर वो मुफ्त में कबाड़ के जैसे पड़ा हो तो बेहतर होगा।हमारे परिवेश में पत्थर, घास, बीज, प्लास्टिक , आदि बहुत सी चीजे बिना वजह पड़ी रहती है, यदि हम उन्हें वजह दे दें तो यह आजीविका का प्रबल साधन बन सकता है।