तरुण जोशी एक परिचय
तरूण जोशी का जन्म 29 अप्रैल, 1992 को गढ़वाल मंडल (चमोली जनपद) के नन्दप्रयाग कस्बे में हुआ था । यहीं से उनकी स्कूली शिक्षा में प्रवेश हुआ अर्थात् आखर से साक्षात्कार हुआ था। तदुपरान्त उन्होंने कक्षा 02 से 10 तक की शिक्षा एम० डी० तिवारी शिक्षा निकेतन हाईस्कूल द्वाराहाट से प्राप्त की ,राजकीय इण्टर कॉलेज द्वाराहाट से इण्टरमीडिएट की परीक्षा पास करने के बाद उन्होंने इंजीनियरिंग की पढ़ाई उत्तराखण्ड तकनीकी विश्वविद्यालय, देहरादून से प्राप्त की। इंजीनियरिंग की पढ़ाई के साथ ही उन्होंने एम. बी. ए की शिक्षा भी प्राप्त की ।उनको बचपन से ही कविताएँ व कहानियों को पढ़ने व लिखने का शौक था, जिसके चलते तत्कालीन समय में प्रचलित किताब बाल प्रहरी में उनकी कविताएँ प्रकाशित होती रहीं। इसके अलावा वे खेलकूद, कला, संगीत आदि के भी प्रेमी थे। अत: उनमें प्रतिभाएँ आजन्म से ही कूट-कूट के भरी हुई थीं। अभाव रहा तो समय का, क्योंकि जब उन प्रतिभाओं को निखारने का समय आया तब वे इस संसार को अलविदा कर चुके थे । यहाँ इतना कहना,समीचीन होगा कि उनकी प्रतिभाओं का उल्लेख करना शब्दों में सम्भव नहीं है ।कुकिंग करना उनके पसंदीदा कार्यों में से एक था। विविध प्रकार के व्यंजन बनाने में वे बेहद निपुण थे। उनकी माता जी बताती हैं कि न जाने कितनी ही बार उन्होंने अपने हाथों का स्वाद हमारी जिह्वा तक पहुँचाया है। अतः ऐसा लगता था मानो स्वयं माँ अन्नपूर्णा उनके कर-कमलों में विराजमान थीं ।इस छोटी सी उम्र में इतना अवश्य था कि वे अपने माता-पिता व गुरु के प्रति सदैव समर्पित रहते थे। एक अच्छा पुत्र व शिष्य होने के साथ-साथ उन्होंने अग्रज होने का कर्तव्य भी पूर्ण निष्ठा से निभाया। अपने अनुज के लिये वे माता-पिता से कम नहीं थे। जब भी परिवार पर किसी भी प्रकार की विपत्ति आती थी वे हमेशा ढाल की तरह खड़े होकर हर मुश्किल का सामना करते थे, ताकि परिवार वालों पर कोई आंच ना आए।
परिवार के साथ-साथ वे समाज के लिये भी उतने ही समर्पित थे । समाज में चल रहे भ्रष्टाचार व बेईमानी से वे बहुत व्यथित रहते थे। उनका सपना एक आई ए एस ऑफिसर बनकर देश व समाज की सेवा करना था, लेकिन खुदा को कुछ और ही मंजूर था। दीप माला के चमचमाते माहौल में धनतेरस के दिन 2 नवम्बर, 2021 को कुमाऊँ की धरती से एक तरुण अवस्था का तरुण हमेशा के लिए हमारी आँखों से ओझल हो गया और उनके सपने व प्रतिभाएँ बिना पंख लगे रह गए ।
युवा कवि तरुण जोशी जी ने बहुत छोटी उम्र से अपनी ओजस्वी एवं भावपूर्ण कविताओं के माध्यम से अपनी एक अलग पहचान बनाई जिससे कवि समाज में उन्हें एक विशिष्ट पहचान प्राप्त हुई है ..। उनकी किताब बेरंग स्याही की कवितायें यथार्थ को स्पर्श कर गम्भीर चिन्तन प्रशस्त करने वाली है। वक्त के साथ-साथ रिश्ते नाते भी बदल जाते हैं। इन रिश्तों को कवि ने कुछ इस अंदाज में प्रस्तुत किया है- दुनिया बदली, इंसान बदले और बदल गई इंसान की सोच ,वक्त बदला, साल बदले और तुम भी बदल गई. नहीं बदला तो सिर्फ ये आसमां, ये धरती, ये तारे पर वो बादल की टुकड़ी भी बदल गई… मौसम में ही कविता परवान चढ़ती हैं। कवि ने अपनी कविता एक नया ठौर की अन्तिम पंक्तियों में लिखा है कि ऐसा घरौंदा हो मेरा जहांस्वप्न देखूँ खुले आसमान तले चादर अंधेरे की काली हो और पंछी कलरव से नींद खुले नैन खुले तो बस हरियाली हो कवि ने समाज में फैली बुराइयों पर भी कड़ा प्रहार किया है, वह चाहे महिलाओं के प्रति बढ़ते अपराध हों, भ्रष्टाचार हो, सांप्रदायिकता का जहर हो, परम्परागत रूढ़ियों में जकड़ी जिंदगियां हो या फिर दरकती मानवीय संवेदनाएं हो। सभी पर कवि ने चिंतन किया है। इतना ही नहीं, कवि ने निराशा के इस घने अंधकार में भी आस का एक दीया जलाकर रखा है। कवि का कहना है- जला सको यदि अपने अंदर के हैवान को आदम रूप में शैतान को ,कुछ सुकून शायद पा जाऊँगी एक मौका देता है गर खुदा तो फिर बेटी बन वापस न आऊँगी ,बहरहाल, भावनाओं के अलावा काव्य सृजन के मामले में भी कविताएं उत्कृष्ट हैं। कवि को अच्छे से मालूम था कि उसे अपनी भावनाओं को किन शब्दों में और किन बिम्बों के माध्यम से प्रकट करना है और यही बिम्ब विधान पाठक को स्थायित्व प्रदान करते हैं। ढूंढने निकले थे हम। खबर ये आयी कि दरिया खद आया था चल के ढूंढनें हमें। रंगकर्मी एवं आयी कि दरिया खुद आया था चल के ढूंढनें हमें।