निदेशालय को देहरादून से संचालित करने पर उठाई आपत्ति।
डा० राजेंद्र कुकसाल।
मो०- 9456590999
उद्यान निदेशालय की स्थापना सन् 1953 भारत रत्न पंडित गोविन्द बल्लभ पन्त ने रानीखेत (अल्मोड़ा) में की थी।
शुरू में निदेशालय का नाम *फल उपयोग विभाग उत्तर प्रदेश रानीखेत* था।
सन् 1988 में उत्तर प्रदेश सरकार ने उद्यान निदेशालय का भवन चैबटिया में बनाने का निर्णय लिया और सन् 1992 में उद्यान भवन चौबटिया रानीखेत में बन कर तैय्यार हुआ।
वर्ष 1990 में निदेशालय का नाम *”उद्यान एवं खाद्य प्रसंस्करण विभाग उत्तर प्रदेश”* कर दिया गया।
राज्य बनने से पूर्व उद्यान निदेशालय, उद्यान भवन, चौबटिया रानीखेत से संचालित होता था राज्य बनने के बाद धिरे धिरे सभी बरिष्ट अधिकारियों के पद देहरादून सम्बन्ध कर दिए गए।
निदेशालय को पूरी तरह सर्किट हाउस देहरादून सिफ्ट करने के प्रयास कार्यवाहक निदेशकों द्वारा समय समय पर किए जाते रहे हैं।
शासन के निर्देश पर सेब उत्पादकों के साथ 25 जून 2021 को आनलाइन बैठक में बागवानों ने उद्यान निदेशालय को देहरादून से चलाने पर आपत्ति की ।
उद्यान निदेशालय चौबटिया की उपेक्षा एवं निदेशक के उद्यान भवन चौबटिया में नहीं बैठने को लेकर कृषकों द्वारा निदेशालय चौबटिया में दिनांक 18 एवं 19 अप्रैल 2022 को धरना प्रदर्शन भी किया गया।
एक रिपोर्ट-
भारत रत्न पंडित गोविन्द बल्लभ पन्त ने उत्तर प्रदेश में अपने मुख्यमंत्री के कार्य काल में पर्वतीय क्षेत्रों के विकास का सपना देखा व उसे वास्तविक रूप से धरातल पर उतारने के लिये रानीखेत में सन् 1953 में माल रोड़ रानीखेत (अल्मोड़ा) में किराए के भवनों में उद्यान विभाग का निदेशालय *फल उपयोग विभाग उत्तर प्रदेश रानीखेत* की स्थापना की यह निदेशालय उत्तर प्रदेश सरकार का एक मात्र निदेशालय था जिसका मुख्यालय पर्वतीय क्षेत्र रानीखेत में स्थापित था।
डाॅ0 विक्टर साने इसके पहले निदेशक बने लम्बे समय तक समस्त उत्तर प्रदेश का उद्यान निदेशालय रानीखेत रहा।सन् 1988 में उत्तर प्रदेश सरकार ने उद्यान निदेशालय का भवन चैबटिया में बनाने का निर्णय लिया और सन् 1992 में उद्यान भवन चौबटिया रानीखेत में बन कर तैय्यार हुआ।
बर्ष 1990 में निदेशालय का नाम *”उद्यान एवं खाद्य प्रसंस्करण विभाग उत्तर प्रदेश”* कर दिया गया।
राज्य बनने से पूर्व उद्यान निदेशालय, उद्यान भवन, चौबटिया रानीखेत से संचालित होता था राज्य बनने के बाद धीरे धीरे सभी बरिष्ट अधिकारियों के पद देहरादून सम्बन्ध कर दिए गए।
निदेशालय को पूरी तरह सर्किट हाउस देहरादून सिफ्ट करने के प्रयास कार्यवाहक निदेशकों द्वारा समय समय पर किए जाते रहे हैं।
सेब उत्पादक एसोसिएशन द्वारा विभाग पर निष्क्रियता के आरोप लगाने पर शासन के निर्देश पर सेब उत्पादकों के साथ 25 जून 2021 को आनलाइन बैठक आयोजित की गयी इस बैठक में बागवानों ने उद्यान निदेशालय को देहरादून से चलाने पर आपत्ति की ।
उद्यान निदेशालय चौबटिया की उपेक्षा एवं निदेशक के उद्यान भवन चौबटिया में नहीं बैठने को लेकर कृषकों द्वारा निदेशालय चौबटिया में दिनांक 18 एवं 19 अप्रैल 2022 को धरना प्रदर्शन भी किया गया।
चौबटिया उद्यान रानीखेत का इतिहास –
चौबटिया गार्डन जिसका क्षेत्रफल 235 हैक्टेयर है की स्थापना 1860 में हुई लेकिन इसने विधिवत् बाग का रूप 1869 में लिया। मि० क्रो, के नेतृत्व में यहां पर सेब, नाशपाती, खुवानी ,प्लम चेरी, हैजैलनट आदि शीतोष्ण फल पौधों का रोपण किया गया।
ब्रिटिश शासकों ने बर्ष 1932 में पर्वतीय क्षेत्रों में शीतोष्ण फलौ के उत्पादन सम्बन्धी ज्ञान जैसे पौधों को लगाना, पौधों का प्रसारण , मृदा की जानकारी ,खाद पानी देने,कटाई छंटाई,कीट व्याधियों से बचाव आदि के निराकरण हेतु चौबटिया उद्यान में *पर्वतीय फल शोध केंद्र* की स्थापना की।
केन्द्र द्वारा अन्य पर्वतीय राज्यों हिमाचल प्रदेश,जम्बू काश्मीर, मणिपुर, सिक्किम तथा पड़ोसी देश भूटान,नैपाल, अफगानिस्तान को फल पौध रोपण सामग्री उपलब्ध कराई गई साथ ही इन राज्यों व प्रदेशौं के प्रसार कार्यकर्त्ताओं को प्रशिक्षण दिया जाता रहा।
राज्य बनने पर आश जगी थी कि अपने राज्य की सरकारें पुरखौ के रखे राज्य में उद्यान विकास की आधारशिला को यहां के बागवानौ के हित में उन्नति के पथ पर आगे बढायेंगें लेकिन आज उद्यान विकास की पुरखौती की रखी यही आधार शिला बन्द होने के कगार पर है।
उद्यान विकास द्वारा ही इस पहाड़ी राज्य का आर्थिक विकास सम्भव था किन्तु बिडम्बना देखिये राज्य बने बाइस बर्षौं में भी उद्यान विभाग को स्थाई निदेशक नहीं मिला राज्य बनने से अबतक 12 से अधिक कार्य वाहक निदेशक एक या दो बर्षौ के लिए बने जो अपना सेवा विस्तार बढ़ाने के चक्कर में हुक्मरानों के कहे अनुसार कार्य करते रहे उसी का दुषपरिणाम है कि आज अधिकतर आलू फार्म, औद्यानिक फार्म, फल शोध केंद्र बन्द होने के कगार पर है । भारत सरकार एवं राज्य सरकार द्वारा संचालित योजनाओं के कार्यान्वयन में पारदर्शिता नहीं दिखाई देती। एक समय था जब उद्यान विभाग फल पौध,सब्जी बीज, आलू बीज के उत्पादन में आत्मनिर्भर ही नहीं बल्कि उच्च गुणवत्ता के सेब आड़ू प्लम खुवानी नाशपाती की फल पौध अन्य राज्यों को भी देता था वर्तमान में पहाड़ी जनपदों की पंजीकृत व्यक्तिगत नर्सरियों विभाग की उपेक्षा के कारण समाप्त हो रही है। सेब ग्राफ्ट बाधाने हेतु ऊंचे दामों पर सेब के बीजू पौधे भी राज्य की पंजीकृत व्यक्तिगत नर्सरियों की अनदेखी कर काश्मीर से मंगाये जा रहे हैं। राज्य में अधिकतर गतिविधियां बंद पड़ी है योजनाओं में अधिकतर निम्न स्तर के निवेश उच्च दामों में निजि कम्पनियों या दलालों के माध्यम से अन्य राज्यों से क्रय किए जा रहे हैं। उद्यान विकास द्वारा राज्य को आत्मनिर्भर बनाने का कोई प्रयास नहीं किया गया।
अधिकारियों की फौज खड़ी कर दी गई है ज्यादातर अधिकारी व कर्मचारी देहरादून में बैठा दिये गये है उद्यान निदेशालय चौबटिया रानीखेत को एक अधिकारी चला रहा है।
कृषक शासन प्रशासन से सवाल कर रहे हैं कि क्या इन्हीं कृत्यों के लिए उत्तराखंड अलग राज्य बना ?