शुक्ल पक्ष वैशाख की,अक्षय मंगल तीज।
अंक अंकुरित हैं सदा, सुख-समृद्धि के बीज।।
बह्मा सुत अक्षय हुए, हुए हैं परशुराम।
चलीं आज हरि लोक से, गंगा धतरी-धाम।।
बद्रीधाम के पट खुलें, बिगड़े बनते काज।
दर्श बिहारी पग मिले, पूर्ण वर्ष में आज।।
दान-ध्यान हो स्नान भी, सूर्योदय से पूर्व।
पाप नष्ट हों, पुण्य की, पूँजी बढ़े अपूर्व।।
श्री-हरि पूजन भाव से, करें जो विधि-विधान।
दारिद्रय मुख मोड़ ले, संगी सुख-सम्मान।।
यत्नों से पा लीजिए, शुभता के आशीष।
भाव अनैच्छिक से कभी, नहीं झुकेगा शीश।।
युग आगम का खंड है, स्वयंसिद्ध यह योग।
एक जन्म शुभ प्राप्त कर, सभी जन्म उपभोग।।
मणि अग्रवाल “मणिका”
सुप्रभात मित्रों! भगवान परशुराम जी के जन्मोत्सव पर एक कवित लिखा है वो सादर प्रस्तुत है! 🌹🙏🌹
कवित
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जोश जामदग्निय कुँ देख कर होश खोवै,
रोष भर छत्रिन के कोष काट डारे है।
करे खंड खंड शत्रु उदंड प्रचंड मारे
बड़े बड़े वीरन कुँ पकर पछारे है।।
बीस एक बार धर छत्रिन विहिन कीनी,
मार मार मेदनी पै शव पाट डारे है ।
भुमि को उतार भार राम द्विज अवतार
परशु की धार कुंड पंच भर डारे है।।
*घनश्याम सिंह किनियां कृत*
*चारणवास हुडील*
शानदार
शानदार सृजन
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