ब्यूरो रिपोर्ट देहरादून
2 जनवरी से आज 6 जनवरी तक एस.सी.ई.आर.टी. उत्तराखंड द्वारा आयोजित गढ़वाली, कुमाऊनी ,जौनसारी एवं रंग भाषाओं की पाठ्य पुस्तकों को तैयार करने का कार्य सम्पन्न हो गया ,आपको बता दें वर्ष 2016 में एस.सी.ई.आर.टी. उत्तराखंड द्वारा यह कार्य प्रारम्भ किया गया था। उस समय इस कार्य संयोजन का दायित्व अनेक शिक्षकों  को मिला था लेकिन कतिपय कारणों से यह आगे नहीं बढ़ पाया था। अब निदेशक अकामिक शोध एवं प्रशिक्षण बंदना गर्व्याल की पहल पर यह कार्य पुनः प्रारम्भ हुआ है अब उम्मीद की जाने लगी है कि आने वाले समय में उत्तराखंड की लोक भाषाएँ गढ़वाली, कुमाऊनी, जौनसारी एवं रंवाई पाठ्यक्रम का हिस्सा होंगी। एस.सी.ई.आर.टी. उत्तराखंड द्वारा महानिदेशक विद्यालयी शिक्षा वंशीधर तिवारी के नेतृत्व में इस संबंध में कार्य योजना तैयार की गई है। प्रथम चरण में गढ़वाली, कुमाऊनी, जौनसारी एवं रंग से संबंधित पाठ्य पुस्तकें तैयार की जा रही हैं। बाद में अन्य लोक भाषाओं को भी चरणबद्ध तरीके से सम्मिलित किया जाएगा। आज पांच दिवसीय कार्यशाला के समापन के अवसर पर निदेशक अकादमिक शोध एवं प्रशिक्षण वंदना गर्ब्याल ने कहा कि उत्तराखंड की लोक भाषाएँ यहां की सांस्कृतिक धरोहर का हिस्सा हैं। राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 बुनियादी स्तर पर बच्चों को सीखने सिखाने के लिए मातृभाषा के माध्यम की बात करती है। इसी संदर्भ में पहले चरण में कक्षा 1 से 5 तक के लिए पाठ्य पुस्तकें तैयार की जा रही हैं। अपर निदेशक एस सीईआरटी अजय कुमार नौडियाल ने कहा कि लोक भाषाओं की पाठ्य पुस्तकों के माध्यम से बच्चों को अपनी सांस्कृतिक जड़ों से जुड़ने का अवसर मिलेगा उनकी साहित्यिक प्रतिभा का भी विकास होगा। उन्होंने लोक भाषाओं की विलुप्त के प्रति चिंता व्यक्त करते हुए कहा कि यह पुस्तकें बच्चों को अपनी लोक भाषाओं से जोड़ने में सहायक होगी । आशा रानी पैन्यूली संयुक्त निदेशक ने कहा कि लोक भाषा आधारित पाठ्य पुस्तकों के पाठ्यक्रम का हिस्सा होने से बच्चों में सांस्कृतिक संवेदनशीलता का विकास होगा, उनमें मातृभाषा में विचारों को व्यक्त करने की स्पष्ट आएगी । सहायक निदेशक डॉ. कृष्णानंद बिजल्वाण ने कहा कि पुस्तक की पठन सामग्री आकर्षक और रुचिकर होनी चाहिए। कार्यशाला में संदर्भदाता के रूप में डॉक्टर नंदकिशोर हटवाल ने पीपीटी के माध्यम से मातृभाषा शिक्षन के लिए पाठ्य पुस्तक लेखन की बारीकियों पर प्रकाश डालते हुये कहा कि पुस्तक बाल मनोविज्ञान के अनुरूप लिखी जानी चाहिए। कार्यशाला के समन्वयक डॉक्टर शक्ति प्रसाद सेमेल्टी तथा सह समन्वयक सोहन सिंह नेगी ने कहा कि इन पाठ्य पुस्तकों के माध्यम से बच्चों में मातृभाषा लेखन के प्रति उत्साह बढ़ेगा । उन्होंने पीपीटी के माध्यम से लोकभाषा लेखन की कार्ययोजना को विस्तार से समझाया। लोक भाषा आधारित पुस्तकों को लिखने के लिए गढ़वाली भाषा में विशेषज्ञ के रूप में डॉ.उमेश चमोला, कुमाऊनी के लिए डॉ.दीपक मेहता, जौनसारी के लिए सुरेंद्र आर्यन तथा रंग के लिए आभा फकलियाल ने योगदान दिया। कक्षावार पुस्तकों के लेखन के लिए समन्वयक के रूप में डॉक्टर अवनीश उनियाल, सुनील भट्ट, गोपाल घुघत्याल, डॉक्टर आलोक प्रभा पांडे और सोहन सिंह नेगी ने कार्य किया। गढ़वाली भाषा के लेखक मंडल में डॉक्टर उमेश चमोला, गिरीश सुंदरियाल, धर्मेंद्र नेगी, संगीता कोठियाल फरासी, संगीता पंवार और सीमा शर्मा ने और कुमाऊनी भाषा के लेखक मंडल में गोपाल सिंह गैड़ा, रजनी रावत, डॉक्टर दीपक मेहता, डॉक्टर आलोक प्रभा तथा बलवंत सिंह नेगी सम्मिलित हैं। जौनसारी भाषा लेखन मंडल में महावीर सिंह कलेटा, हेमलता नौटियाल, मंगल राम चिलवान, चतर सिंह चौहान तथा दिनेश रावत ने योगदान दिया। रंग भाषा में लेखन के लिए आशा दरियाल, श्वेता ह्यांकी, रजनी नपच्याल और आभा फकलियाल ने कार्य किया। पुस्तक लेखन में अजीम प्रेम जी फाउंडेशन से राज्य समन्वयक अम्बरीष बिष्ट, खजान सिंह और प्रदीप चंद्र डिमरी सम्मिलित रहे।

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